AMU छात्र को बड़ी राहत: 2020 के CAA विरोध प्रदर्शन मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आपराधिक कार्रवाई पर लगाई रोक

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ 2020 में हुए प्रदर्शनों से जुड़ा मामला

उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से जुड़े एक अहम मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने छात्र समुदाय को राहत देने वाला निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने उस छात्र के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिसे वर्ष 2020 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ हुए प्रदर्शन में भाग लेने के आरोप में पुलिस द्वारा अभियुक्त बनाया गया था।

इस फैसले को लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत माना जा रहा है और यह उन छात्रों के लिए उम्मीद की किरण बना है जो शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बावजूद कानूनी जाल में फंस गए हैं।

 क्या था मामला?

साल 2019 के दिसंबर और 2020 की शुरुआत में देश के कोने-कोने में CAA और NRC के खिलाफ ज़ोरदार प्रदर्शन हुए थे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) भी उन प्रमुख केंद्रों में शामिल रही, जहां छात्रों ने बड़ी संख्या में शांतिपूर्ण विरोध जताया।

उसी दौरान, विश्वविद्यालय के एक छात्र पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया। प्राथमिकी में धारा 147 (दंगा), 188 (लोक सेवक के आदेश की अवज्ञा), 353 (लोक सेवक पर हमला) समेत कई अन्य धाराएं लगाई गई थीं।

एफआईआर में आरोप था कि विरोध प्रदर्शन के दौरान माहौल हिंसक हो गया था और छात्र पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, पुलिस पर पथराव करने तथा उकसाने के आरोप लगे थे। लेकिन छात्र और उसके समर्थकों ने शुरुआत से ही इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि वह सिर्फ शांतिपूर्ण प्रदर्शन का हिस्सा था और उसे बिना किसी ठोस सबूत के फंसाया गया है।

हाई कोर्ट ने क्या कहा?

हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस केस में सुनवाई करते हुए माना कि अभियुक्त छात्र के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई पुख्ता साक्ष्य मौजूद नहीं हैं, जिससे यह साबित हो सके कि उसने हिंसा भड़काई या कानून-व्यवस्था को बाधित किया।

कोर्ट ने कहा कि जब तक इस मामले में आगे की सुनवाई नहीं होती, तब तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। यह अंतरिम आदेश छात्र के भविष्य को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाएगा और यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए तत्पर है।

 छात्र पक्ष की दलीलें

छात्र के वकील ने अदालत को बताया कि उनका मुवक्किल सिर्फ लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए प्रदर्शन में शामिल हुआ था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि छात्र पर सिर्फ संदेह के आधार पर केस दर्ज किया गया है और उसके खिलाफ न तो कोई वीडियो साक्ष्य है, न कोई प्रत्यक्षदर्शी।

वकील ने कोर्ट को बताया कि प्रदर्शन के दौरान जो भी हिंसक गतिविधियाँ हुईं, उनका उस छात्र से कोई लेना-देना नहीं था और पुलिस ने राजनीतिक दबाव में आकर बिना उचित जांच के नामजद कर दिया।

 AMU में संतोष की लहर

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले से AMU कैंपस में संतोष, राहत और उम्मीद का माहौल देखने को मिला। छात्रों और शिक्षकों ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत है और यह दिखाता है कि न्याय अभी ज़िंदा है।

AMU छात्र संघ के एक पूर्व अध्यक्ष ने मीडिया से बातचीत में कहा,

“यह फैसला उन हजारों छात्रों के लिए राहत है जो बिना दोष के सिर्फ अपनी आवाज़ उठाने के कारण कानूनी प्रक्रिया में उलझ गए। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है कि हम अभी भी न्याय की उम्मीद कर सकते हैं।”

सोशल मीडिया पर मिल रही है जबरदस्त प्रतिक्रिया

जैसे ही यह खबर सामने आई, ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह तेज़ी से वायरल हो गई। #CAAProtestRelief, #JusticeForStudents, #AMUStandWithTruth जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।

कई मशहूर वकीलों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस फैसले को एक जरूरी कानूनी मिसाल बताया और कहा कि यह छात्रों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए प्रेरणा देगा।

 आगे क्या?

कोर्ट ने इस केस की अगली सुनवाई की तारीख तय कर दी है, जिसमें विस्तृत बहस होगी। यह देखना अहम होगा कि क्या पूरी तरह से केस खारिज होता है या छात्र को और कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है।

हालांकि, अंतरिम राहत मिलना भी छात्र के लिए बड़ी सफलता मानी जा रही है। यह मामला अब छात्र राजनीति, नागरिक अधिकारों और लोकतंत्र के बीच एक महत्वपूर्ण उदाहरण बनता जा रहा है।

 निष्कर्ष:

CAA और NRC को लेकर हुआ देशव्यापी विरोध एक ऐतिहासिक आंदोलन था, जिसने हजारों छात्रों और युवाओं को सड़क पर उतरने के लिए प्रेरित किया। लेकिन इसके बाद कई निर्दोष छात्र कानूनी कार्रवाई के घेरे में आ गए ऐसे समय में इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला यह दिखाता है कि भारत की न्याय व्यवस्था में अभी भी उम्मीद बची है।

यह आदेश न सिर्फ उस छात्र को राहत देता है, बल्कि उन सभी आवाज़ों के लिए समर्थन है जो संविधान के दायरे में रहकर बदलाव की मांग करते हैं।

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