हरिद्वार से हैरान कर देने वाली खबर, स्वास्थ्य विभाग पर उठे सवाल
उत्तराखंड के हरिद्वार जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसने सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं और प्रशासन की CMO कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। nasbandi के बाद महिला गर्भवती — इस घटना ने न केवल महिला को मानसिक और शारीरिक तौर पर झकझोर कर रख दिया है, बल्कि उसकी जिंदगी भी अस्त-व्यस्त कर दी है।
यह मामला तब सामने आया जब एक महिला, जिसने दो साल पहले सरकारी अस्पताल में नसबंदी करवाई थी, अब गर्भवती पाई गई। शुरुआत में उसे खुद भी विश्वास नहीं हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है। लेकिन जब रिपोर्ट पॉजिटिव आई, तो वह सीधा स्वास्थ्य विभाग के पास पहुंची। यहां से शुरू हुआ पीड़िता का संघर्ष, जो अब तक जारी है।
नसबंदी के बाद भी हुई गर्भवती – क्या था मामला?
हरिद्वार की रहने वाली यह महिला दो बच्चों की मां है। वर्ष 2022 में उसने परिवार नियोजन के तहत सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में नसबंदी की थी, ताकि भविष्य में अनचाहे गर्भ से बचा जा सके। सरकारी अस्पताल ने सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद नसबंदी सफल बताई और उसे छुट्टी दे दी गई।
लेकिन दो साल बाद अचानक तबियत बिगड़ने पर जब उसने जांच करवाई, तो पता चला कि वह गर्भवती है। इस खबर ने उसके होश उड़ा दिए। घर में पहले से दो छोटे बच्चे, आर्थिक तंगी और मानसिक तनाव — इस सबने उसे पूरी तरह तोड़ कर रख दिया।
CMO ऑफिस से गायब हो गई मदद की फाइल
महिला जब इस मुद्दे को लेकर सीएमओ कार्यालय पहुंची, तो उसने आर्थिक और मानसिक सहायता की मांग की। पहले अधिकारियों ने सहानुभूति जताई और सहायता राशि देने की बात कही, लेकिन कुछ समय बाद जब वह दोबारा फॉलोअप के लिए पहुंची, तो उसे बताया गया कि उसकी फाइल ही “गायब” हो गई है।
यह सुनते ही महिला और उसके परिवार की उम्मीदें टूट गईं। अब वे जिला प्रशासन और स्वास्थ्य मंत्री से न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
क्या है नियम?
सरकारी नसबंदी असफल होने पर सरकार की तरफ से मुआवज़ा देने का प्रावधान है। यह राशि ₹30,000 से ₹50,000 तक हो सकती है, जो महिला के मानसिक और शारीरिक नुकसान को देखते हुए दी जाती है। लेकिन इस केस में न सिर्फ़ नसबंदी फेल हुई, बल्कि विभागीय लापरवाही ने उसकी मदद की फाइल तक गायब कर दी।
स्वास्थ्य विभाग की सफाई
सीएमओ कार्यालय ने मीडिया से बातचीत में कहा कि मामला गंभीर है और जांच जारी है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “फाइल को लेकर यदि कोई लापरवाही हुई है, तो संबंधित कर्मचारियों पर कार्रवाई होगी। हम पीड़िता के साथ अन्याय नहीं होने देंगे।”
हालांकि अब तक महिला को कोई ठोस सहायता नहीं मिली है।
सोशल मीडिया पर उठा मामला
जब यह खबर सामने आई, तो सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दीं। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर “#HaridwarSterilizationCase” ट्रेंड करने लगा। कई यूज़र्स ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, वहीं कुछ ने महिला के लिए आर्थिक मदद की अपील भी की।
महिला की भावनात्मक स्थिति
पीड़िता ने मीडिया से बात करते हुए कहा,
“मैंने नसबंदी इसलिए करवाई थी ताकि मेरे परिवार पर बोझ न बढ़े। अब न तो सरकार मदद कर रही है और न ही अधिकारी मेरी सुन रहे हैं। फाइल गायब कर देना क्या मेरी ज़िंदगी की जिम्मेदारी से भागना नहीं है?”
उसकी आँखों में आँसू और शब्दों में टूटापन साफ दिखाई दे रहा था।
क्या होगा अगला कदम?
अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस पीड़िता को न्याय दिला पाएगा? क्या नसबंदी फेल होने की ज़िम्मेदारी तय होगी? और सबसे बड़ा सवाल — क्या हर महिला अब सरकारी नसबंदी पर भरोसा कर पाएगी?
स्वास्थ्य मंत्री से इस मामले पर जवाब मांगा गया है, और पीड़िता ने महिला आयोग में भी शिकायत दर्ज करवाई है।
निष्कर्ष:
यह मामला न सिर्फ चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली की भी पोल खोलता है। महिला की मदद की फाइल का गायब हो जाना एक गंभीर लापरवाही है, जिसकी जांच आवश्यक है। अगर सरकार और स्वास्थ्य विभाग समय रहते इस मामले को गंभीरता से नहीं लेंगे, तो यह न केवल पीड़िता के अधिकारों का हनन होगा, बल्कि अन्य महिलाओं के विश्वास को भी तोड़ेगा।