नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि बिना किसी गलत नीयत के नाबालिग के होंठ छूना POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) कानून के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।
हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की हरकत गरिमा का हनन और शील भंग का मामला बन सकती है, और इसके लिए आरोपी पर अन्य धाराओं के तहत मुकदमा चल सकता है।
क्या है पूरा मामला?
इस केस में एक व्यक्ति पर नाबालिग बच्ची के होंठ छूने का आरोप लगा था।
- पीड़िता की मां ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी ने उनकी बेटी के साथ अनुचित हरकत की।
- इस मामले में POCSO एक्ट के तहत आरोपी पर मुकदमा दर्ज किया गया।
- आरोपी की ओर से दलील दी गई कि यह कृत्य किसी भी गलत नीयत के बिना हुआ था और इसे यौन उत्पीड़न के तहत नहीं रखा जाना चाहिए।
- मामला दिल्ली high court पहुंचा, जहां न्यायाधीशों ने POCSO एक्ट की धाराओं की व्याख्या करते हुए अपना फैसला सुनाया।
दिल्ली high court का फैसला
हाईकोर्ट ने POCSO एक्ट की धारा 7 और 8 के तहत आरोपी को दोषमुक्त कर दिया, लेकिन उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 (शील भंग) और 509 (महिला की गरिमा का हनन) के तहत दोषी माना।
कोर्ट के मुख्य बिंदु:
✅ अगर किसी नाबालिग के साथ यौन इरादे से कोई हरकत की जाती है, तो वह POCSO अपराध माना जाएगा।
✅ यदि कोई व्यक्ति गलत नीयत से नहीं, बल्कि अन्य कारणों से संपर्क करता है, तो यह POCSO अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।
✅ लेकिन यह कृत्य पीड़िता की गरिमा और शील भंग करने के तहत IPC के तहत दंडनीय होगा।
🔹 फैसले में high court ने कहा:
“किसी भी मामले में पीड़िता की गरिमा को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए। इसलिए, भले ही यह मामला POCSO कानून के दायरे में न आए, लेकिन यह अपराध पूरी तरह से निर्दोष नहीं माना जा सकता।”
POCSO एक्ट क्या कहता है?
POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) कानून 2012 में बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए लागू किया गया था।
इस कानून के तहत:
🔹 यौन इरादे से किया गया कोई भी स्पर्श या संपर्क अपराध माना जाएगा।
🔹 किसी भी प्रकार की अश्लील हरकत या यौन उत्पीड़न पर कठोर सजा का प्रावधान है।
🔹 18 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे के खिलाफ किया गया यौन अपराध POCSO एक्ट के तहत आता है।
लेकिन इस केस में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर गलत नीयत साबित नहीं होती, तो इसे POCSO के तहत नहीं रखा जा सकता।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कई कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत किया, लेकिन कुछ ने चिंता भी जताई कि यह फैसला POCSO मामलों में गलत संदेश दे सकता है।
✅ फैसले का समर्थन:
- वरिष्ठ वकील आरके शर्मा ने कहा,
“यह निर्णय POCSO कानून की सीमाओं को स्पष्ट करता है। किसी भी कृत्य को बिना यौन इरादे के केवल इसलिए अपराध नहीं मानना चाहिए क्योंकि वह किसी नाबालिग से जुड़ा है।”
❌ फैसले की आलोचना:
- महिला एवं बाल अधिकार कार्यकर्ता सुमित्रा सेन ने कहा,
“इस तरह के फैसले से अपराधियों को राहत मिल सकती है। पीड़िताओं को हमेशा न्याय मिलना चाहिए, चाहे अपराध की प्रकृति कुछ भी हो।”
भविष्य में इस फैसले का क्या असर पड़ेगा?
📌 POCSO एक्ट के मामलों में न्यायालयों को यौन इरादे की गहराई से जांच करनी होगी।
📌 अगर किसी आरोपी का इरादा गलत नहीं था, तो उसे POCSO के तहत सजा नहीं दी जाएगी।
📌 हालांकि, IPC की धारा 354 और 509 के तहत सजा संभव होगी।
यह फैसला यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में न्यायालयों को अधिक सतर्क रहने और सबूतों के आधार पर निर्णय लेने के लिए प्रेरित करेगा।
पीड़ितों को न्याय कैसे मिलेगा?
अगर कोई POCSO अपराध का शिकार होता है, तो उसे तुरंत पुलिस और चाइल्ड हेल्पलाइन (1098) पर शिकायत दर्ज करानी चाहिए।
✔️ परिवार को मामले की गंभीरता को समझना चाहिए और कानूनी मदद लेनी चाहिए।
✔️ पुलिस को सभी जरूरी सबूत जुटाने चाहिए, ताकि पीड़िता को न्याय मिल सके।
✔️ अदालत को दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुनकर निष्पक्ष फैसला देना चाहिए।
निष्कर्ष
दिल्ली high court का यह फैसला POCSO कानून की स्पष्टता को बढ़ाने वाला है। हालांकि, यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि क्या इससे यौन अपराधों के मामलों में राहत मिल सकती है।
इस फैसले से यह साफ हो गया कि अगर यौन इरादा नहीं है, तो POCSO के तहत मामला नहीं बनेगा, लेकिन गरिमा का हनन और शील भंग का मामला IPC की अन्य धाराओं के तहत दर्ज किया जा सकता है।
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